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लोग कहते है
लोग कहते हैं हुई थी बारिश उस रोज़,उन्हें क्या पता ग़म-ए-हिज़्र में रोया था कोई।यूँ साए देख कर खुश होते हैं सब ग़ाफ़िल,उन्हें क्या पता कल धूप में सोया था कोई।कतरा-कतरा कर के मुस्कुराते हैं सभी,उन्हें क्या पता चश़्म-ए-तर का रोया था कोई।मंज़िल-ए-आखिर को चलते हैं अब राहिल,उन्हें क्या पता इन राहों पर खोया था कोई।हजारों ख्वाहिशें ऐसी, कि हर ख्वाहिश पे दम निकलेबहुत निकले मेरे अरमां, मगर फिर भी कम निकले।वैसे जिन्दा हूँ जिन्दगी बिन तेरे मैं,दर्द ही दर्द बाकी रहा है सीने में ...साँस लेना भर ही यहाँ जीना नहीं है,अब तो आदत सी है मुझको ऐसे जीने में ...जुदा होके भी तू मुझमें कहीं बाकी है,पलकों में बनके आँसु तू चली आती है ...जो तु चाहे वो तेरा हो,रोशन राँते खुबसुरत सवेरा हो।जारी रखेंगे हम दुआंओ का सिलसिला, कामयाब हर मंजिल पर दोस्त मेरा हो।रात में उजियारे के लिए ! बस एक चाँद काफी है !! तुझे ना भुला पाने के लिए ! बस एक मुलाकात काफी है !! हवाओ में भर दे मदहोशी ! उसके लिए होंठो पर मुस्कराहट काफी है !! Engineer से बना दे शायर! उसके लिए तो तेरा बस एक ख्वाव काफी है !
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